भूख ब्याकुल हो उठता है चेहरा जब लगती है भूख कुम्हल | हिंदी कविता

"भूख ब्याकुल हो उठता है चेहरा जब लगती है भूख कुम्हलाता है जैसे कोई वृक्ष रहा हो सूख चैन नहीं आता है जबतक क्षुधा शांत न होती क्षुधा शांत होती जब भी मिलते चावल रोटी मगर भूख है कई तरह की शीघ्र नहीं जो मिटती जैसे धन दौलत का भूख जगह जगह है दिखती कोई प्रेम का भूखा है तो हवश का भूखा कोई जिसे शांत ना कर सकती है बेखुद कोई रसोई ©Sunil Kumar Maurya Bekhud"

 भूख
ब्याकुल हो उठता है चेहरा
जब लगती है भूख
कुम्हलाता है जैसे कोई 
वृक्ष रहा हो सूख

चैन नहीं आता है जबतक
क्षुधा शांत न होती
क्षुधा शांत होती जब भी
मिलते चावल रोटी

मगर भूख है कई तरह की
शीघ्र नहीं जो मिटती
जैसे धन दौलत का भूख
जगह जगह है दिखती

कोई प्रेम का भूखा है तो
 हवश का भूखा कोई
जिसे शांत  ना कर सकती  है
बेखुद कोई रसोई

©Sunil Kumar Maurya Bekhud

भूख ब्याकुल हो उठता है चेहरा जब लगती है भूख कुम्हलाता है जैसे कोई वृक्ष रहा हो सूख चैन नहीं आता है जबतक क्षुधा शांत न होती क्षुधा शांत होती जब भी मिलते चावल रोटी मगर भूख है कई तरह की शीघ्र नहीं जो मिटती जैसे धन दौलत का भूख जगह जगह है दिखती कोई प्रेम का भूखा है तो हवश का भूखा कोई जिसे शांत ना कर सकती है बेखुद कोई रसोई ©Sunil Kumar Maurya Bekhud

#भूख

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