चलते रहे हम सफर पे कश्तियों को देखकर
फिर किस से अपनी ज़ुस्तज़ु की तमन्ना करते
रहबर उनके सभी थे हमें छोड़ कर
फिर क्या टूटे मंदिर-मस्ज़िदों में इबादत करते
उन्हें देख-बात करने का हक हमें छोड़ सब को दिया था।
अपने ज़मीर के मालिक शायद खुद थे हम
करते रहे वो नफरत हमसे हमें देख
इसकी इजाज़त सबे छोड़ उन्हें थी शायद।
इबादत
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#khnazim
#peace