कभी कभी तन्हाई में बैठकर, सोचती हूँ ये शायद तुम् | हिंदी Poetry

"कभी कभी तन्हाई में बैठकर, सोचती हूँ ये शायद तुम्हें भी मेरी कमी, यूँही खलती होगी फिर ख़ुद को समझा देती हूँ, हर बार की तरह, कि कल्पनाओं के हिस्से में,हक़ीक़त नहीं होगी आज फिर बरसों बाद, तुम्हारे गाँव से गुजरी , लगा मानो वो निगाहें मुझे,आज भी ढूंढ़ती होगी सच कहते हैं लोग, वक़्त लौटकर नहीं आता मगर फिर ये यादें हमारे साथ, उम्रभर क्यों होगी! कभी कभी तन्हाई में बैठकर, सोचती हूँ ये कि ज़िंदगी इक दिन,हमें फिर से मिला रही होगी -पूनम PP ✍ ©Miss Poonam.PP"

 कभी कभी तन्हाई  में बैठकर, सोचती हूँ ये 
शायद तुम्हें भी मेरी कमी, यूँही खलती होगी 
 
फिर ख़ुद को समझा देती हूँ, हर बार की तरह,
कि कल्पनाओं के हिस्से में,हक़ीक़त नहीं होगी 

आज फिर बरसों बाद, तुम्हारे गाँव से गुजरी ,
लगा मानो वो निगाहें मुझे,आज भी ढूंढ़ती होगी 

सच कहते हैं लोग, वक़्त लौटकर नहीं आता 
मगर फिर ये यादें हमारे साथ, उम्रभर क्यों होगी!

कभी कभी तन्हाई में बैठकर, सोचती हूँ ये 
कि ज़िंदगी इक दिन,हमें फिर से मिला रही होगी 
-पूनम PP ✍

©Miss Poonam.PP

कभी कभी तन्हाई में बैठकर, सोचती हूँ ये शायद तुम्हें भी मेरी कमी, यूँही खलती होगी फिर ख़ुद को समझा देती हूँ, हर बार की तरह, कि कल्पनाओं के हिस्से में,हक़ीक़त नहीं होगी आज फिर बरसों बाद, तुम्हारे गाँव से गुजरी , लगा मानो वो निगाहें मुझे,आज भी ढूंढ़ती होगी सच कहते हैं लोग, वक़्त लौटकर नहीं आता मगर फिर ये यादें हमारे साथ, उम्रभर क्यों होगी! कभी कभी तन्हाई में बैठकर, सोचती हूँ ये कि ज़िंदगी इक दिन,हमें फिर से मिला रही होगी -पूनम PP ✍ ©Miss Poonam.PP

"Ruhan and Prerna"
#happycouple
@Ajit Bhai Yadav Jugal Kisओर @Anshu writer Praveen Storyteller

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