वह किसी से मिलता नहीं, जुदाई के डर से,
नहीं तो उसका क्या वास्ता,तन्हाई के घर से.
वह बिखरा है अनेको बार ,टूट के इतना.
दोस्ती तोड़ दी सबसे इसी डर से.
कभी किसी के दिल का नूर था,वह,
आज बचता –फिरता है ,उसी के नजर से
जख्म दे गए गहरा ,कुछ चेहरे इतना,
की उभर आते है ,वो दीवारों-पत्थर से.
©Kamlesh Kandpal
#judai