White कि ख्वाबों के दरख्त टूटते जा रहे है, मुसाफ़ | हिंदी शायरी

"White कि ख्वाबों के दरख्त टूटते जा रहे है, मुसाफ़िर रास्तों में कहीं छूटते जा रहे हैं, अब कितनी देर बैठेंगे एक छत के नीचे पारिजात, बरसात रुक चुकी है शायद नये फूल आने जा रहे हैं || ©parijat"

 White कि ख्वाबों के दरख्त टूटते जा रहे है, 
मुसाफ़िर रास्तों में कहीं छूटते जा रहे हैं, 

अब कितनी देर बैठेंगे एक छत के नीचे पारिजात, 
बरसात रुक चुकी है शायद नये फूल आने जा रहे हैं ||

©parijat

White कि ख्वाबों के दरख्त टूटते जा रहे है, मुसाफ़िर रास्तों में कहीं छूटते जा रहे हैं, अब कितनी देर बैठेंगे एक छत के नीचे पारिजात, बरसात रुक चुकी है शायद नये फूल आने जा रहे हैं || ©parijat

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