"वो शहर"
जब हम कोई शहर छोड़ते हैं तो , हमसे सिर्फ़ वो शहर नहीं छूटता है ,
हमसे छूटता है एक किराए का कमरा, जिसमें हमने कई साल बिताए होते हैं,
छूटता है हमसे एक मोहल्ला , एक गली जो हमारी हर आहट पहचानती है।
छूटती है हमसे एक किराने की दुकान , एक नाई की दुकान और एक जनरल स्टोर ,
हर शाम दोस्तों के साथ इकट्ठा होने वाला अड्डा , शहर के चौराहे पर, वो एक चाय की दुकान।
छूट जाते हैं वो पड़ोसी , जो कब अजनबी होकर भी सगे रिश्तेदार बन जाते हैं, पता ही नहीं चलता ।।
पीछे छोड़ आते हैं हम, वो एक लड़की जिसे चाहकर भी अपने दिल की बात ना कह पाए कभी,
उसके घर के बाहर चंद मिनट खड़े होकर, मन ही मन अलविदा कह आते हैं,
ये सोचकर के शायद अब जिंदगी में हम दोबारा ना मिले कभी ।।
घर लौट के आने की खुशी में हम देख ही नहीं पाते के कितना कुछ छूट रहा है पीछे हमसे।।
एक बड़ी सी वक्त की गठरी में, हम चंद सालों की यादें ठूस - ठूस कर ले आते हैं।
जिंदगी में जब भी कभी ये गठरी खोलते है, तो हर बार कुछ पल इधर - उधर बिखर जाते हैं।
ये पल, आंखों में आंसू और होंठो पर मुस्कुराहट बनकर, उभर आते हैं।
©" शमी सतीश " (Satish Girotiya)
#वो_शहर