White हमारी परवरिश प्रत्येक बात में टोका-टोकी पर प | हिंदी Quotes Vide

"White हमारी परवरिश प्रत्येक बात में टोका-टोकी पर पूर्णरूपेण आधारित है! आजादी के इतने वर्षों बाद भी हमारे देश में, खासकर ग्रामीण एवं मध्यमवर्गीय परिवारों में उनके स्वयं के जीवन से जुड़े निर्णय लेने का अधिकार नहीं दिया जाता है! उन पर पारिवारिक सदस्यों की अनुचित बातों को भी उचित मानने को दबाव बनाया जाता है! उन्हें मानसिक रूप से प्रताड़ित किया जाता है॥ तत्पश्चात् भविष्य में उनके साथ कुछ भी गलत होता है तो यही हमारे सगे परिवारजन अपनी गलती मानने के बजाय सारा दोष उनके भाग्य को कोसते हुए अपने औलाद के मत्थे मढ़ देते हैं! आधुनिक युग में हो रहे बदलाव, अत्यधिक उतार-चढ़ाव, भव्य शादियां- जर्जर रिश्ते; इन सभी कारकों को भी हमारे भारतीय माता-पिता पिछले दशक से तुलनात्मक भिन्नता करने में अनभिज्ञता, असमर्थता की मौजूदगी के बावजूद भी अपनी रूढ़िवादी सोच "लोग क्या कहेंगे"? को पूर्णत: प्रभावी मानकर अपने औलाद की जिंदगी को जीने की जगह उन्हें उनकी जीवन-लीला समाप्त करने को अंदरूनी आहत कर मजबूर करने के बावजूद भी स्वयं को बेकसूर मानने से बाज नहीं आते!!इसका मुख्य कारण इसी मतलबी समाज, रिश्तेदार के सहारे अपना जीवन-यापन करने में इन्हें आसानी महसूस होने की असत्यता समाहित होने की झूठी-आस विद्यामान है, जबकि इनके बच्चे की खुशी सर्वोपरि है न कि कोई अन्य क्षणिक कारक॥ अन्ततः इनकी पारिवारिक- सामाजिक क्षणिक मतलबी विचारधाराओं में हम आधुनिक युग के युवा-पीढ़ी को स्वयं की जीवन-लीला समाप्त करने को मजबूर न करने की कोशिश सिर्फ हमारे माता-पिता ही कर सकते हैं न कि 'जैसा कर्तव्य वैसा वक्तव्य' के अनुसार अपनी जुबान परिवर्तित करने वाले मतलबी समाज, परिवार एवं रिश्तेदार॥ ©Rustam Juli Yadav "

White हमारी परवरिश प्रत्येक बात में टोका-टोकी पर पूर्णरूपेण आधारित है! आजादी के इतने वर्षों बाद भी हमारे देश में, खासकर ग्रामीण एवं मध्यमवर्गीय परिवारों में उनके स्वयं के जीवन से जुड़े निर्णय लेने का अधिकार नहीं दिया जाता है! उन पर पारिवारिक सदस्यों की अनुचित बातों को भी उचित मानने को दबाव बनाया जाता है! उन्हें मानसिक रूप से प्रताड़ित किया जाता है॥ तत्पश्चात् भविष्य में उनके साथ कुछ भी गलत होता है तो यही हमारे सगे परिवारजन अपनी गलती मानने के बजाय सारा दोष उनके भाग्य को कोसते हुए अपने औलाद के मत्थे मढ़ देते हैं! आधुनिक युग में हो रहे बदलाव, अत्यधिक उतार-चढ़ाव, भव्य शादियां- जर्जर रिश्ते; इन सभी कारकों को भी हमारे भारतीय माता-पिता पिछले दशक से तुलनात्मक भिन्नता करने में अनभिज्ञता, असमर्थता की मौजूदगी के बावजूद भी अपनी रूढ़िवादी सोच "लोग क्या कहेंगे"? को पूर्णत: प्रभावी मानकर अपने औलाद की जिंदगी को जीने की जगह उन्हें उनकी जीवन-लीला समाप्त करने को अंदरूनी आहत कर मजबूर करने के बावजूद भी स्वयं को बेकसूर मानने से बाज नहीं आते!!इसका मुख्य कारण इसी मतलबी समाज, रिश्तेदार के सहारे अपना जीवन-यापन करने में इन्हें आसानी महसूस होने की असत्यता समाहित होने की झूठी-आस विद्यामान है, जबकि इनके बच्चे की खुशी सर्वोपरि है न कि कोई अन्य क्षणिक कारक॥ अन्ततः इनकी पारिवारिक- सामाजिक क्षणिक मतलबी विचारधाराओं में हम आधुनिक युग के युवा-पीढ़ी को स्वयं की जीवन-लीला समाप्त करने को मजबूर न करने की कोशिश सिर्फ हमारे माता-पिता ही कर सकते हैं न कि 'जैसा कर्तव्य वैसा वक्तव्य' के अनुसार अपनी जुबान परिवर्तित करने वाले मतलबी समाज, परिवार एवं रिश्तेदार॥ ©Rustam Juli Yadav

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