इस दीर्घ रचना के पिछले भाग अर्थात् बारहवें भाग में आपने देखा अश्वत्थामा ने दुर्योधन को पाँच कटे हुए नर कंकाल समर्पित करते हुए क्या कहा। आगे देखिए वो कैसे अपने पिता गुरु द्रोणाचार्य के अनुचित तरीके के किये गए वध के बारे में दुर्योधन ,कृतवर्मा और कृपाचार्य को याद दिलाता है। फिर तर्क प्रस्तुत करता है कि उल्लू दिन में अपने शत्रु को हरा नहीं सकता इसीलिए वो रात में हीं घात लगाकर अपने शिकार पर प्रहार करता है। पांडव के पक्ष में अभी भी पाँचों पांडव , श्रीकृष्ण , शिखंडी , ध्रीष्टदयुम्न आदि और अनगिनत सैनिक मौजूद थे जिनसे दिन में लड़कर अश्वत्थामा जीत नहीं सकता था । इसीलिए उसने उल्लू से सबक सीखकर रात में हीं घात लगाकर पड़ाव पक्ष पे प्रहार कर नरसंहार रचाया। और देखिए अभिमन्यु के गलत तरीके से किये गए वध में जयद्रथ द्वारा निभाई गई महत्वपूर्ण भूमिका और तदुपरांत केशव और अर्जुन द्वारा अभिमन्यु की मृत्यु का प्रतिशोध लेने के लिए रचे गए प्रपंच। प्रस्तुत है दीर्घ कविता "दुर्योधन कब मिट पाया " का तेरहवां भाग।
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