रात - दिन का होश अब किसे है यहां
ज़िंदगी रोज़ एक जंग लड़ रही है जहां
हर एक जाती सांस नया डर जगाती है
फिर दुबारा वापस ये आए न आए यहां
खौफ का मंज़र है ये चारों तरफ अपने
जाने कई रूप में मौत मंडरा रही है यहां
जिन होठों पर कभी मुस्कान सजा करती थी
गम का राग उमड़ आया है वहां
©अनुभूति अनिता पाठक
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