जितने छिपे हैं बैरी साये में वो सारे नही दिखते क | हिंदी शायरी

"जितने छिपे हैं बैरी साये में वो सारे नही दिखते कितना धुंआ है शहर में अब छत से तारे नही दिखते आपकी मुस्कान"

 जितने छिपे हैं बैरी साये में वो सारे नही दिखते 

कितना धुंआ है शहर में अब छत से तारे नही दिखते



आपकी मुस्कान

जितने छिपे हैं बैरी साये में वो सारे नही दिखते कितना धुंआ है शहर में अब छत से तारे नही दिखते आपकी मुस्कान

#तारे #सितारे #शहर #Pollution

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