प्रेम पत्र अक्सर जब भी उठाता हूं कलम, कि लिखूं त | हिंदी कविता

"प्रेम पत्र अक्सर जब भी उठाता हूं कलम, कि लिखूं तुम्हारे लिए प्रेम पत्र। मुझे सूझते नहीं शब्द, बयान करने को इश्क़, मैं चाहता हूं तुमसे बहुत कुछ कहना, मगर... लिखते हुए कलम रुक जाती है। तुम्हें इस कदर चाहता हूं कि, लिखने के लिए जब भी, तुम्हें सोचता हूं, बस तुम में ही खो जाता हूं। सिर्फ तुम ही ज़हन में रहती हो, और अल्फाज़ भूल जाता हूं। डॉ. दीपक कुमार 'दीप' . ©Dr Deepak Kumar Deep"

 प्रेम पत्र   अक्सर जब भी उठाता हूं कलम,
कि लिखूं तुम्हारे लिए प्रेम पत्र।

मुझे सूझते नहीं शब्द,
बयान करने को इश्क़,
मैं चाहता हूं तुमसे बहुत कुछ कहना,
मगर...
लिखते हुए कलम रुक जाती है।

तुम्हें इस कदर चाहता हूं कि,
लिखने के लिए जब भी,
तुम्हें सोचता हूं,
बस तुम में ही खो जाता हूं।

सिर्फ तुम ही ज़हन में रहती हो,
और अल्फाज़ भूल जाता हूं।

डॉ. दीपक कुमार 'दीप'



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©Dr Deepak Kumar Deep

प्रेम पत्र अक्सर जब भी उठाता हूं कलम, कि लिखूं तुम्हारे लिए प्रेम पत्र। मुझे सूझते नहीं शब्द, बयान करने को इश्क़, मैं चाहता हूं तुमसे बहुत कुछ कहना, मगर... लिखते हुए कलम रुक जाती है। तुम्हें इस कदर चाहता हूं कि, लिखने के लिए जब भी, तुम्हें सोचता हूं, बस तुम में ही खो जाता हूं। सिर्फ तुम ही ज़हन में रहती हो, और अल्फाज़ भूल जाता हूं। डॉ. दीपक कुमार 'दीप' . ©Dr Deepak Kumar Deep

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