प्रिय डायरी बैठे जो कभी लिखने दर्द-ए-ग़म तमाम लिखा

"प्रिय डायरी बैठे जो कभी लिखने दर्द-ए-ग़म तमाम लिखा, जब भी लिखा बस तेरा नाम लिखा। एक जिसे चाहा वही तो ना मिला हमको, बरना हाथों की लकीरों में क्या ना था लिखा।।"

 प्रिय डायरी बैठे जो कभी लिखने दर्द-ए-ग़म तमाम लिखा,
 जब भी लिखा बस तेरा नाम लिखा।
 एक जिसे चाहा वही तो ना मिला हमको,
बरना हाथों की लकीरों में क्या ना था लिखा।।

प्रिय डायरी बैठे जो कभी लिखने दर्द-ए-ग़म तमाम लिखा, जब भी लिखा बस तेरा नाम लिखा। एक जिसे चाहा वही तो ना मिला हमको, बरना हाथों की लकीरों में क्या ना था लिखा।।

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