इस छत को यमुना का किनारा, घर को गोकुल मान ले राधिक | हिंदी कविता

"इस छत को यमुना का किनारा, घर को गोकुल मान ले राधिका के मन में क्या है भला, आज कान्हा जी ये जान लें, बांसुरी की गूंज से, हर पल यहाँ पावन बना मन में कान्हा है तभी तो, ये मन वृन्दावन बना कौन बसता वृन्दावन में, चल इसे पहचान लें, राधिका के मन में क्या है भला, आज कान्हा जी ये जान लें, सामने कान्हा हैं खडे, उनके आगे झुक ज़रा मन तो कहता बोल दे, पर लाज कहती रूक ज़रा लाज का घूंघट हटे, यदि राधिका ये ठान ले, राधिका के मन में क्या है भला, आज कान्हा जी ये जान लें, ©Adhoore_Alfaaz"

 इस छत को यमुना का किनारा,
घर को गोकुल मान ले
राधिका के मन में क्या है भला, 
आज कान्हा जी ये जान लें,

बांसुरी की गूंज से, हर पल यहाँ पावन बना
मन में कान्हा है तभी तो, ये मन वृन्दावन बना
कौन बसता वृन्दावन में, चल इसे पहचान लें,
राधिका के मन में क्या है भला, 
आज कान्हा जी ये जान लें,

सामने कान्हा हैं खडे, उनके आगे झुक ज़रा
मन तो कहता बोल दे, पर लाज कहती रूक ज़रा
लाज का घूंघट हटे, यदि राधिका ये ठान ले,
राधिका के मन में क्या है भला, 
आज कान्हा जी ये जान लें,

©Adhoore_Alfaaz

इस छत को यमुना का किनारा, घर को गोकुल मान ले राधिका के मन में क्या है भला, आज कान्हा जी ये जान लें, बांसुरी की गूंज से, हर पल यहाँ पावन बना मन में कान्हा है तभी तो, ये मन वृन्दावन बना कौन बसता वृन्दावन में, चल इसे पहचान लें, राधिका के मन में क्या है भला, आज कान्हा जी ये जान लें, सामने कान्हा हैं खडे, उनके आगे झुक ज़रा मन तो कहता बोल दे, पर लाज कहती रूक ज़रा लाज का घूंघट हटे, यदि राधिका ये ठान ले, राधिका के मन में क्या है भला, आज कान्हा जी ये जान लें, ©Adhoore_Alfaaz

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