"किसको खबर है कि जिंदगी किस ख्याल में कट रही है
इक ही वक्त पे हजार मसले जेहन में उतर रही है।
कोशिश नाकाम साबित हुए मेराज
एक सवाल लेकर वह शहरों की गलियों में भटक रही है।
खबर नहीं उसे की किस ओर जाना हैं
किस घड़ी को छोड़कर किसको पाना है।
बेख़्याल बेपरवाह हो कर वो भीर में दौर रहे हैं
मेरे कश्ती को कहीं तो किनारा मिले
इक छांव की तलाश में मुसाफ़िर हो चले हैं।
©Deepak Kumar
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