"शब्दों का सूखा पड़ा है ll
दिल जबसे टूटा पड़ा है ll
मैं पकवान कैसे खाऊंगा,
बाहर कोई भूखा खड़ा है ll
एकलव्य द्रोणाचार्य से सीखा भी, हारा भी,
गुरू के कदमों में शिष्य का अंगूठा पड़ा है ll
इतना टूटने के बाद भी खड़ा हूँ,
सब समझते हैं, अजूबा खड़ा है ll
दलाल झूठ की दलीलों के सामने,
सच बोलने वाला ही झूठा पड़ा है ll"
📷 धन्यवाद! ( शुभ कुमार)
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