जब तू ही नहीं मुहल्लें में, त का रखा है ई हुल्लड़ | हिंदी कविता

"जब तू ही नहीं मुहल्लें में, त का रखा है ई हुल्लड़-हल्लें में, कउन सा रंग, लगिहे कउन अंग, किसको ढूंढे हम दो तल्ले में, आ, जब तू ही नहीं मुहल्लें में, त का रखा है ई हुल्लड़-हल्लें में। लाल-हरा सब रंग मिलाईबे, भर अंगनवा खूब पियराई बे, कौन रंगिये हमके कल्ले में, फागुआ गुजरिये हाथ मल्ले में, आ, जब तू ही नहीं मुहल्लें में, त का रखा है ई हुल्लड़-हल्लें में।"

 जब तू ही नहीं मुहल्लें में, 
त का रखा है ई हुल्लड़-हल्लें में, 
कउन सा रंग, लगिहे कउन अंग, 
किसको ढूंढे हम दो तल्ले में,
आ, जब तू ही नहीं मुहल्लें में, 
त का रखा है ई हुल्लड़-हल्लें में।

लाल-हरा सब रंग मिलाईबे, 
भर अंगनवा खूब पियराई बे, 
कौन रंगिये हमके कल्ले में, 
फागुआ गुजरिये हाथ मल्ले में, 
आ, जब तू ही नहीं मुहल्लें में, 
त का रखा है ई हुल्लड़-हल्लें में।

जब तू ही नहीं मुहल्लें में, त का रखा है ई हुल्लड़-हल्लें में, कउन सा रंग, लगिहे कउन अंग, किसको ढूंढे हम दो तल्ले में, आ, जब तू ही नहीं मुहल्लें में, त का रखा है ई हुल्लड़-हल्लें में। लाल-हरा सब रंग मिलाईबे, भर अंगनवा खूब पियराई बे, कौन रंगिये हमके कल्ले में, फागुआ गुजरिये हाथ मल्ले में, आ, जब तू ही नहीं मुहल्लें में, त का रखा है ई हुल्लड़-हल्लें में।

त का रखा है ई हुल्लड़-हल्लें में,

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