अपनी ख़ामोशी लो अपनी ख़ामोशी को सरताज बनाते है,  अब | हिंदी कविता

"अपनी ख़ामोशी"

अपनी ख़ामोशी

लो अपनी ख़ामोशी को सरताज बनाते है, 
अब तेरे हर झूठे वादों पे मुस्कुराते है, 
पता नहीं ज़िन्दगी कब हसीं से उदासी में तब्दील हो गई, वो बचपन याद कर के मुस्कराता हूँ, वो स्कूल की घण्टी से दिल का भर जाना, चलो एक दिन तो अच्छा गुजरा अब वापस घर है जाना, जब खत्म हुई स्कूल की पढाई  तो फिर कॉलेज जाने की बारी आई, हर सुबह खुशी का एक नया बहाना था, हमे कौन सा लेक्चर अटेंड करने जाना था, प्रॉक्सी लगा देना बोल कर दोस्तों को हम फिर सो जाते थे, बचपन के सपनो में हम फिर खो जाते थे, बड़े हो कर हमने भी यह जाना, ज़िंदगी का

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