दाग बङे गहरे हैं
सच पर निरे पहरे हैं ।
झूठ के दिख रहे
जाने कितने चेहरे हैं ।
सत्ता के गलियारे में
चाटूकारों के फेरे हैं ।
जमीर गिरवी रखकर
बने अंधे-गूंगे-बहरे हैं।
गंदा है पर धंधा है
राजनीति का फंडा है।
मजबूर जनता पर ही
राजतंत्र का शिकंजा है।
धर्म की सीधी-राह पर
चलता सिर्फ नेक बंदा है।
पाखंड की दुनिया में तो
धर्म भी बना आज धंधा है।
पीङा इतनी बढ गई
नींद आँख से उङ गई
सच-झूठ की जंग में
गरिमा देश की लुट गई ।
दाग सचमुच गहरे हैं
अशोभनीय चेहरे हैं
रक्त-रंजित माँ भारती
खंजर अबतक ना ठहरे हैं।
©Parveen Malik
#Shades