"#OpenPoetry अभी मेरी पहचान नहीं है जमाने मैं।
बनाना हैं पहचान कुछ कर देखने में।
अभी पहचान नहीं है जमाने मैं।
क्योंकि वक़्त है मुझे अपना वक़्त लेने में।
और सोच के रखता हूं हर कदम।
क्योंकि सब खड़े हैं मुझे गिराने में।
बेसे डरता नहीं हूं गिर के उठ जाने में।
बस तकलीफ होती है उन्हे, जिनहोने कोसिस करि है मुजे हर बार गिराने में।
©kabil
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