धूल में सिमटी हुई यादें,
मेरे चौखटे पर ,
कर रही इंतजार
कमीज को फिर से,
धूल से रंगने का ।
उनकी आवाजें ,
गुम हो गयी है ,
मेरे मोबाइल के ,
तड़कते भड़कते गाने के,
शोर में।
मैंने यादों को ,
मरने छोड़ दिया ।
मोबाइल स्क्रीन के ,
भागते रंगों के बीच ।
इस प्रक्रिया ने मुझे बताया
भागने वाली चीजें ,
स्थिर चीजों के ,
मौत का कारण है ।
जैसे दौड़ती हुई ट्रेन,
और भागता हुआ पंखा,
किसी पटरी के बीच ,
किसी बन्द कमरे के अंदर
रुके हुए को मार देती है ।
©Satyam kr Satyarthi
बिछड़ी हुई याद
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@Divyashree Mishra
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