नया इक रिश्ता पैदा क्यूं करें हम
बिछड़ना है तो झगड़ा क्यूं करें हम
ख़ामोशी से अदा हो रस्म-ए-दूरी
कोई हंगामा बरपा क्यूं करें हम
ये काफ़ी है कि हम दुश्मन नहीं हैं
वफ़ादारी का दावा क्यूं करें हम
वफ़ा इख़्लास क़ुर्बानी मोहब्बत
अब इन लफ़्ज़ों का पीछा क्यूं करें हम
हमारी ही तमन्ना क्यूं करो तुम
तुम्हारी ही तमन्ना क्यूं करें हम
किया था अहद जब लम्हों में हम ने
तो सारी उम्र ईफ़ा क्यूं करें हम
नहीं दुनिया को जब परवाह हमारी
तो फिर दुनिया की परवाह क्यूं करें हम
©shaik azam
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