ज़न्नत मुझे चाहिए
उड़ती हुई बादलो को देखा क्या आपने?
— नहीं देखा!
गुनगुनाते हुई चिड़िया को क्या कभी सुना हैं आपने?
— नहीं सुना!
बहती हुई नदियों को समझा क्या आपने?
— नहीं ना!
धड़कते हुए दिलों को क्या कभी गौर किया हैं आपने?
— शायद किया होगा...
फजर की वो दो बुलाती हुई आपकी चेहरा—
रौशनी छाई हुई थी!
ऐसा लग रहा था की मेरे खब हकीकत में बोलने लगी— "मुझे जन्नत चाहिए!"
सूरज नही निकली थी...
आज मैं लिख रहा हुं—
मालुम नही इरादो को अलफाज कैसे बनाऊं!
आल्लाह ने मुझे जन्नत बुला रही हैं अब हर रोज आपकी इंतजार में!
सूरज अब भी नही निकला हुआ है...
©Taibur Rahman Khan
My first writing in Hindi 🥰🤗
#ज़न्नत