White ग़ज़ल :- इस ज़िन्दगी का बाकी भी अरमान नहीं है  | हिंदी शायरी

"White ग़ज़ल :- इस ज़िन्दगी का बाकी भी अरमान नहीं है  जो भी दिया है दुनिया ने सम्मान नहीं है  करना था इसे काम तरक्की हो वतन की फ़िर्को में बटा लड़ता क्या नादान नहीं है  किससे करूँ मैं जाके शिकायत भी अदू की   पहचान मगर इनकी भी आसान नहीं है  इतना न करो जुल्म़ भी सरकार सभी पर  इंसान की औलाद है शैतान नहीं है  हर जुल्म़ लिखा होगा हिसाबों में तुम्हारा  बन्दे खुदा के घर के बेईमान नहीं है  दौलत के पुजारी हैं न होंगे ये किसी के  जो मजहबों में बाटता इंसान नहीं है  कुछ लोग हैं दे देते हैं जो जान वतन पर  इस मुल्क़ की  ऐसे तो बढ़ी शान नहीं है  अब और न तारीफें करें आप यहाँ पर  अब इतने भी  अच्छे यहां परिधान नहीं है  आया खुदा के घर से तो इंसान प्रखर था  पर आज उसी की कोई पहचान नहीं है  महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR"

 White ग़ज़ल :-

इस ज़िन्दगी का बाकी भी अरमान नहीं है 
जो भी दिया है दुनिया ने सम्मान नहीं है 

करना था इसे काम तरक्की हो वतन की
फ़िर्को में बटा लड़ता क्या नादान नहीं है 

किससे करूँ मैं जाके शिकायत भी अदू की 
 पहचान मगर इनकी भी आसान नहीं है 

इतना न करो जुल्म़ भी सरकार सभी पर 
इंसान की औलाद है शैतान नहीं है 

हर जुल्म़ लिखा होगा हिसाबों में तुम्हारा 
बन्दे खुदा के घर के बेईमान नहीं है 

दौलत के पुजारी हैं न होंगे ये किसी के 
जो मजहबों में बाटता इंसान नहीं है 

कुछ लोग हैं दे देते हैं जो जान वतन पर 
इस मुल्क़ की  ऐसे तो बढ़ी शान नहीं है 

अब और न तारीफें करें आप यहाँ पर 
अब इतने भी  अच्छे यहां परिधान नहीं है 

आया खुदा के घर से तो इंसान प्रखर था 
पर आज उसी की कोई पहचान नहीं है 

महेन्द्र सिंह प्रखर

©MAHENDRA SINGH PRAKHAR

White ग़ज़ल :- इस ज़िन्दगी का बाकी भी अरमान नहीं है  जो भी दिया है दुनिया ने सम्मान नहीं है  करना था इसे काम तरक्की हो वतन की फ़िर्को में बटा लड़ता क्या नादान नहीं है  किससे करूँ मैं जाके शिकायत भी अदू की   पहचान मगर इनकी भी आसान नहीं है  इतना न करो जुल्म़ भी सरकार सभी पर  इंसान की औलाद है शैतान नहीं है  हर जुल्म़ लिखा होगा हिसाबों में तुम्हारा  बन्दे खुदा के घर के बेईमान नहीं है  दौलत के पुजारी हैं न होंगे ये किसी के  जो मजहबों में बाटता इंसान नहीं है  कुछ लोग हैं दे देते हैं जो जान वतन पर  इस मुल्क़ की  ऐसे तो बढ़ी शान नहीं है  अब और न तारीफें करें आप यहाँ पर  अब इतने भी  अच्छे यहां परिधान नहीं है  आया खुदा के घर से तो इंसान प्रखर था  पर आज उसी की कोई पहचान नहीं है  महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR

ग़ज़ल :-


इस ज़िन्दगी का बाकी भी अरमान नहीं है 

जो भी दिया है दुनिया ने सम्मान नहीं है 

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