गुजरता वक्त राहों से पता नहीं पूछता मंजिलों को वह | हिंदी कविता

"गुजरता वक्त राहों से पता नहीं पूछता मंजिलों को वह खुद बनाए चलता है गुफ्तगू करता मुश्किलों से वह खुद राहों में मुश्किलें बनाएं चलता है जिस के नक्शों पर अनेकों बाधाएं बाहें फैलाए खड़ी रहती हैं चुनौतियों का दीदार किए वह खुद जश्नों के घर बनाए चलता है तय करना अनुभवों के अनुसरणों के खोजों पर चलना क्योंकि बड़ा जिद्दी है ये वक्त कमजोर खड़े दरख़्तो को ढहाए चलता है ©Yãsh BøRâ"

 गुजरता वक्त राहों से पता नहीं पूछता
मंजिलों को वह खुद बनाए चलता है
गुफ्तगू करता मुश्किलों से 
वह खुद राहों में मुश्किलें बनाएं चलता है
जिस के नक्शों पर अनेकों बाधाएं 
बाहें फैलाए खड़ी रहती हैं 
चुनौतियों का दीदार किए
वह खुद जश्नों के घर बनाए चलता है
तय करना अनुभवों के अनुसरणों के 
खोजों पर चलना
क्योंकि बड़ा जिद्दी है ये वक्त
कमजोर खड़े दरख़्तो को ढहाए चलता है

©Yãsh BøRâ

गुजरता वक्त राहों से पता नहीं पूछता मंजिलों को वह खुद बनाए चलता है गुफ्तगू करता मुश्किलों से वह खुद राहों में मुश्किलें बनाएं चलता है जिस के नक्शों पर अनेकों बाधाएं बाहें फैलाए खड़ी रहती हैं चुनौतियों का दीदार किए वह खुद जश्नों के घर बनाए चलता है तय करना अनुभवों के अनुसरणों के खोजों पर चलना क्योंकि बड़ा जिद्दी है ये वक्त कमजोर खड़े दरख़्तो को ढहाए चलता है ©Yãsh BøRâ

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