काश मैं वो मिट्टी हो जाऊं
जिसे सवेरे तुम्हारे पांव सबसे पहले स्पर्श करते है
या फिर वो हवा हो जाऊं
जो तेरे गालों को छू कर बारीकी से निकाल जाती है
काश मैं बारिश की वो बूंद हो जाऊं
जिसे खुद पर गिरता देख तुम उसे मेहसूस कर उस संग खेलते हो
या फिर वो पेड़ हो जाऊं
जिसकी छाव में थकने के बाद तुम सुकून तलाशते हो
काश मैं वो तकिया हो जाऊं
जिसे गले लगा कर घंटो तक तुम रोते हो
या फिर मैं वो कंबल हो जाऊं,
जिसमे सिमट कर तुम रोज़ नए सपने सजाते हो।
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