हा निकल पड़ा हूं। दूर तुझसे निकल पड़ा हूं। जख्मों | हिंदी शायरी

"हा निकल पड़ा हूं। दूर तुझसे निकल पड़ा हूं। जख्मों को सिते सिते अब थक चुका हूं। ये जो दर्द मिले है उल्फत में अब छुपते नहीं है। जमाने को तो हर बात खलती है। नुमाइश जज्बातों की बेशुमार होती है। मगर तू समझा ही कहां प्यार को शायद यहीं वज़ह है। तू ख़ुश और में अब भी रो रहा हूं। इसीलिए दूर तुझसे निकल पड़ा हूं।"

 हा निकल पड़ा हूं। 
दूर तुझसे निकल पड़ा हूं।
जख्मों को सिते सिते अब थक चुका हूं।
 ये जो दर्द मिले है उल्फत में अब छुपते नहीं है।
जमाने को तो हर बात खलती है।
नुमाइश जज्बातों की बेशुमार होती है।
मगर
तू समझा ही कहां प्यार को 
शायद यहीं वज़ह है। 
तू ख़ुश और में अब भी रो रहा हूं।
इसीलिए दूर तुझसे निकल पड़ा हूं।

हा निकल पड़ा हूं। दूर तुझसे निकल पड़ा हूं। जख्मों को सिते सिते अब थक चुका हूं। ये जो दर्द मिले है उल्फत में अब छुपते नहीं है। जमाने को तो हर बात खलती है। नुमाइश जज्बातों की बेशुमार होती है। मगर तू समझा ही कहां प्यार को शायद यहीं वज़ह है। तू ख़ुश और में अब भी रो रहा हूं। इसीलिए दूर तुझसे निकल पड़ा हूं।

जब आपकी महुब्बत इतनी बेपरवाह हो कि वो आपको ज़ख्म दे रही है ये भी पता नहीं हो।




#vinaykumarwrites #Broken #hurt

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