प्रेम
ये बूंदों की साज़िश थी
कि जब हम तुम मिले
तो वो बरसे और खूब बरसे
मुझे भीगना पसंद नहीं था
या कहो भीगने का स्वाद चखा ही न था
प्रेम से भी मैं अनजान थी
या कहो प्रेम का अहसास कभी न हुआ था
तुमने मेरा हाथ पकड़ा
और अपने साथ ले गए
पहाड़ की चोटी पर
बारिश, फिसलन और मेरा डरना
सबकुछ संभाल लिया था
अपनी मजबूत बाजुओं में,
उस दिन लगा बारिश;
बुरी तो नहीं होती!
और उसी दिन
न..न...
उसी क्षण महसूस किया
प्रेम किसी भी क्षण, किसी से भी हो सकता है।
जैसे मुझे बरसते बादलों से हुआ...
जैसे मुझे तुमसे हुआ...
©Soma
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