इस ठंड में आग से लिपट कर रोना चाहता हूं जमी हू अभी | हिंदी शायरी

"इस ठंड में आग से लिपट कर रोना चाहता हूं जमी हू अभी मै आसमा होना चाहता हूं थक चुका हूं चलते चलते जिंदगी के सफर में खुदा माने अर्जि तो हमेशा के लिए सोना चाहता हूं"

 इस ठंड में आग से लिपट कर रोना चाहता हूं
जमी हू अभी मै  आसमा होना चाहता हूं
थक चुका हूं चलते चलते जिंदगी के सफर में
खुदा माने अर्जि तो हमेशा के लिए सोना चाहता हूं

इस ठंड में आग से लिपट कर रोना चाहता हूं जमी हू अभी मै आसमा होना चाहता हूं थक चुका हूं चलते चलते जिंदगी के सफर में खुदा माने अर्जि तो हमेशा के लिए सोना चाहता हूं

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