उंट के पीठ पे चढकर मौँला देख खजूर कर उंगली बोला भ | हिंदी Poetry

"उंट के पीठ पे चढकर मौँला देख खजूर कर उंगली बोला भूंख लगी है जमके मोहे हे ऊपर वाले भरदे झोला नहीं भरा जब कुछ भी उसमें खसका मुंडा सबकुछ खोला रचा शिला से घातक खंजर उंट था गायब भरा था झोला उपर वाला देखा हरकत नयी तरकीब से उसको पेला कहा मिलेगा न अब कुछ तुझको पकड कटोरा चिल्ला देदे मौला #Sadharanmanushya ©#maxicandragon"

 उंट के पीठ पे चढकर मौँला 
देख खजूर कर उंगली बोला
भूंख लगी है जमके मोहे
हे ऊपर वाले भरदे झोला
नहीं भरा जब कुछ भी उसमें 
खसका मुंडा सबकुछ खोला
रचा शिला से घातक खंजर
उंट था गायब भरा था झोला
उपर वाला देखा हरकत 
नयी तरकीब से उसको पेला
कहा मिलेगा न अब कुछ तुझको 
पकड कटोरा  चिल्ला देदे मौला
#Sadharanmanushya

©#maxicandragon

उंट के पीठ पे चढकर मौँला देख खजूर कर उंगली बोला भूंख लगी है जमके मोहे हे ऊपर वाले भरदे झोला नहीं भरा जब कुछ भी उसमें खसका मुंडा सबकुछ खोला रचा शिला से घातक खंजर उंट था गायब भरा था झोला उपर वाला देखा हरकत नयी तरकीब से उसको पेला कहा मिलेगा न अब कुछ तुझको पकड कटोरा चिल्ला देदे मौला #Sadharanmanushya ©#maxicandragon

उंट के पीठ पे चढकर मौँला
देख खजूर कर उंगली बोला
भूंख लगी है जमके मोहे
हे ऊपर वाले भरदे झोला
नहीं भरा जब कुछ भी उसमें
खसका मुंडा सबकुछ खोला
रचा शिला से घातक खंजर
उंट था गायब भरा था झोला

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