क्या फर्क पड़ता है की
कितनी कविताएँ तुम्हारे लिये
लिखी गई
कितने सावन तुम्हारे लिये बरसे,
वो झूमके जो तुम झूम के लाये थे
क्या फर्क पड़ता है
वो किताब जो शिद्दत से भेजी
उस शिद्द्त से क्या फर्क पड़ता है...
वक्त की धूल जम गई...
तुम और तुम्हारी किताब दोनों पर...
याद करुँ तो प्रेम है
भुला दूँ तो नफरत है...
और आगे बढ़ जाऊँ तो
कुछ भी नहीं
कहीं नहीं था.....
कभी नहीँ था....!
©ajnabi
#Love