बहुत रह लिया तन्हा
अब हम तुम्हारे हैं
एक अनजान मुसाफिर ने इश्क़ का इतर लगा दिया
मैं भरा था काँटों से ..मुझे गुलाब की तरह महका दिया
मैं जब देखूं आइना तो मुझे नज़र तुम आने लगे
देख के खुद को यूं हम मुस्कुराने लगे
मचाया धड़कनों ने शोर
ये कैसा जादू किया
तेरा मुख चाँद सा , बिलास जिसके पास है
हर आशिक़ को जिससे मिलने की एक आस है
तुमसे इश्क़ है कुछ ऐसा
जैसे नदी के दो किनारे है
बहुत रह लिया तन्हा
अब हम तुम्हारे हैं।
©Kaviraj Twinkal
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