नज़ारे फ़िरदौस के
ख्वाबगाह की गर्त में थे
आँख खुली तो तुम सामने थे
फिर लगा की ख्वाब झूठे होते है
कम्बख्त बंद आँखों में सोते है
अब नींद कुफ्र में है मेरी
औऱ मै रातों को लिए घूम रहा हूँ
बस एक लफ्ज़ ढूंढ़ रहा हूँ
तुम्हें बयां करने के लिए
फ़िरदौस काफ़ी नहीं तुम्हें
कहने के लिए
#somethingSPECIAL