तेरे चहरे की हसरते दिद को देखना था
जैंसे मजदूर की आंखों में निंन्द को देखना था
दो भाईयों में बहस थी जमीनी मसलो पर
माँ की ख्वाहिश थी कि अबके वर्ष साथ में मनाते हुए इद देखनी थी
नई नवेली दुल्हन की तरह सजाये थे खाब मैने
इतनी हबस थी की बस खुली आँखों से जित देखनी थी
©Shubhamshavi choudhary
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