तेरे चहरे की हसरते दिद को देखना था जैंसे मजदूर की | हिंदी Shayari

"तेरे चहरे की हसरते दिद को देखना था जैंसे मजदूर की आंखों में निंन्द को देखना था दो भाईयों में बहस थी जमीनी मसलो पर माँ की ख्वाहिश थी कि अबके वर्ष साथ में मनाते हुए इद देखनी थी नई नवेली दुल्हन की तरह सजाये थे खाब मैने इतनी हबस थी की बस खुली आँखों से जित देखनी थी ©Shubhamshavi choudhary"

 तेरे चहरे की हसरते दिद  को देखना था
जैंसे मजदूर की आंखों में निंन्द को देखना था 

दो भाईयों में बहस थी जमीनी मसलो पर
माँ की ख्वाहिश थी कि अबके वर्ष   साथ में मनाते हुए इद देखनी थी

नई नवेली दुल्हन की तरह सजाये थे खाब मैने
इतनी हबस थी की बस खुली आँखों से जित देखनी थी

©Shubhamshavi choudhary

तेरे चहरे की हसरते दिद को देखना था जैंसे मजदूर की आंखों में निंन्द को देखना था दो भाईयों में बहस थी जमीनी मसलो पर माँ की ख्वाहिश थी कि अबके वर्ष साथ में मनाते हुए इद देखनी थी नई नवेली दुल्हन की तरह सजाये थे खाब मैने इतनी हबस थी की बस खुली आँखों से जित देखनी थी ©Shubhamshavi choudhary

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