दुःख ------------------ कितना सहज, स्वभाविक था | हिंदी विचार

"दुःख ------------------ कितना सहज, स्वभाविक था मरुस्थल में ताप की तरह अनवरत गिरता रहा मुझपर... सुख ---------- मेरी कल्पना में मेरे माथे के मरुस्थल को तुम अपने हाथों की नदी से सहलाती हो... ©Piyush"

 दुःख 
------------------

कितना 
सहज, स्वभाविक था 
मरुस्थल में ताप की तरह
अनवरत गिरता रहा मुझपर...

सुख 
----------

मेरी कल्पना में
मेरे माथे के मरुस्थल को
तुम अपने हाथों की नदी से 
सहलाती हो...

©Piyush

दुःख ------------------ कितना सहज, स्वभाविक था मरुस्थल में ताप की तरह अनवरत गिरता रहा मुझपर... सुख ---------- मेरी कल्पना में मेरे माथे के मरुस्थल को तुम अपने हाथों की नदी से सहलाती हो... ©Piyush

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