चल रही थी जिंदगी बिना रुके बिना थके
हो रही थी शाम भी बिना रुके बिना थके
उम्मीद का दिया जला के,कर रहे थे हवाओं से बाते
मुश्किलो को पीछे छोड़कर,चल रहे थे मन में कुछ राग गुनगुनाते
विश्वास को मुठ्ठी में बांधकर ,सोच को बुलंद कर के अपनी
जीने थे हमे वो हर सपने ,देखे थे खुली आंखो से जो हमने
मन को अपने हमने है संभाला,आसमान को छूने का इरादा जो है हमने ठाना
होगे सपने तुम्हारे भी पूरे तब,भरोसा होगा अपने इरादों पर तुम्हे जब
चल रही थी जिंदगी बिना रुके बिना थके
हो रही थी शाम भी बिना रुके बिना थके
©shalini pareek
चल रही थी जिंदगी बिना रुके बिना थके
हो रही थी शाम भी बिना रुके बिना थके
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