बने हैं मुहाफ़िज़ सभी अपने रब के कि जिसने जहाँ सारी | हिंदी कविता

"बने हैं मुहाफ़िज़ सभी अपने रब के कि जिसने जहाँ सारी रचना रचाई तनिक अपनी इंसानियत भी बचालो उसी रब से तुमने ये नेमत भी पाई। ©Ragini Preet"

 बने हैं मुहाफ़िज़ सभी अपने रब के
कि जिसने जहाँ सारी रचना रचाई
तनिक अपनी इंसानियत भी बचालो
उसी रब से तुमने ये नेमत भी पाई।

©Ragini Preet

बने हैं मुहाफ़िज़ सभी अपने रब के कि जिसने जहाँ सारी रचना रचाई तनिक अपनी इंसानियत भी बचालो उसी रब से तुमने ये नेमत भी पाई। ©Ragini Preet

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