न जाने कितने सूरज की आग में तपे हैं
कितने समुद्र की गहराई सा धैर्य धरे हैं
मेरे सपनों से पिता के कितने सपने ढहे हैं
सबका दुःख धारण कर पिता पिता बने हैं
कितनी सर्द रातें खेतों में सोए हैं
कितने खलिहान पीठ पर ढोए हैं
चटटानो से लड़कर भी ना टूटे हैं
कितने बीज धरा चीर कर बोए हैं
सब कंगूरे बने लेकिन वो खुद नींव बने हैं
सबका दुःख धारण कर पिता पिता बने हैं
न रुकते हैं,न थकते हैं,न हार मानते
सींच-सींच पसीने से सारा घर पालते
खुद का कुर्ता, जूती लाना भूल जाते
जब बच्चे खिलौना और किताब मांगते
कितने आँसू आंखों में रह सैलाब बने हैं
सबका दुःख धारण कर पिता पिता बने हैं
©Deshraj Gurjar
#FathersDay