White नजरें ढूढ़ती फिरती है,अपना एक ख्वाबो का शहर
कोई एक मंजिल हो जहाँ ले चलूँ मै अपना उमीदों का सफर,
कोई कैसे यह मान ले कि
कितना नाकामयाब हूँ मै
संघर्षों की राह मे
कितना बेबुनियाद हूँ मै
आवाज़ आती है अंदर से
कि कुछ कर दिखाऊं मै
लेकिन इस समाज के दुराचारों से
कितना परेशान हूँ मै
नजर जहां पड़े वहाँ मुसीबतें नजर आती है
लेकिन जहाँ धैर्य शिखर पर चढ़ा हो
उम्मीदें भी वही नजर आती है
सफर सुहाना ही हो यह जरूरी तो नहीं
मगर सुनहरा हो जाता है वह पल
जब मंजिल नजर आती हैं।।।
नजरें ढूढ़ती फिरती है,अपना एक ख्वाबो का शहर
कोई एक मंजिल हो जहाँ ले चलूँ मै अपना उमीदों का सफर।।।।
©kuch khyaal
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