जो कभी लफ्जों में ना भाव बयाँ कर पाया,
उसको मैने एक लय दिया है कविता में।
जो हो सका ना आजतक हासिल मुझको,
उस दूरी को मैने तय किया है कविता में।
जिस बाग में हुकूमत रहा काँटों का सदा,
उसी बाग से गंध लिया है कविता में।
उमर बंधी है पूरी कई दृश्य- अदृश्य बंधन से,
मैने हर पल को स्वच्छंद जिया है कविता में।
जहर जीवन में घुला है तो तय है मर जाना,
पर शब्दों के संग मैने अमृत पिया है कविता में।
✍️ साकेत ठाकुर
जो कभी लफ्जों में ना भाव बयाँ कर पाया,
उसको मैने एक लय दिया है कविता में।
जो हो सका ना आजतक हासिल मुझको,
उस दूरी को मैने तय किया है कविता में।
जिस बाग में हुकूमत रहा काँटों का सदा,
उसी बाग से गंध लिया है कविता में।
उमर बंधी है पूरी कई दृश्य- अदृश्य बंधन से, मैने हर पल को स्वच्छंद जिया है कविता में।
जहर जीवन में घुला है तो तय है मर जाना,