दोस्त मिलते ही नहीं हैं
आजकल उस मोड़ पर
रास्ते सब ठीक हैं
में भी कुछ भुला नहीं
इमारते हैं सब वही
आवाज कोई आती नहीं
पीठ पर थप्पी नहीं
कोई मिलता क्यों नहीं
आजकल उस मोड़ पर
चाय की वो चुस्कियां
अखबार की बारीकियां
कहकहे कुछ अनसुने
ख्वाब थे कितने बुने
मिलते नहीं हैं अब यहां
आज कल उस मोड़ पर
भीड़ काफी हो गयी
ट्रैफिक का शोर है
लोग भी सब खो गए
उधार की कुछ चाएँ पड़ी हैं
शर्त लगाकर जीती जो हैं
इंतज़ार था हमने किया
पर क्यों मिलेंगे
आज कल उस मोड़ पर
कह के गए थे बात अब
कल करेंगे
बात जो बाकी रही
बरसों तलाशता रहा
उस जगह उनके निशां
गम हो गये हैं बियाबां
इसलिए मिलते नहीं हैं
आजकल उस मोड़ पर
लोग मिलते ही नहीं हैं आजकल उस मोड़ पर