#Labour_Day घर से अपने हम दुर हैं,
हाँ हम भी मजदूर है !
अपनों से दुर रह कर,
काम करने को मजबूर हैं !!
हाँ हम भी मजदूर है....
दिन में हमें कमाना होता है ,
तब रात में खाना होता है !
किसी को हमारी चिंता नहीं है ,
न हमारे पास कोई बहाना होता है!!
ये दुनियां भी बड़ा क्रूर है...
हाँ हम भी मजदूर है....
होली, दीपावली, ईद, रमजान !
रोहन, सोहन, सलीम, रहमान !!
कोई भी हो काम पर इस दिन,
नहीं मिलता कभी भी आराम !!
ख़ुदा का ये कैसा दस्तूर है....
हाँ हम भी मजदूर है....
घर में माँ -बाप बीमार हो,
या दिन क्यों न इतवार हो !
समय पर कभी छुटी नहीं मिलती,
सुनना पड़ता है क्या तुम गवाँर हो !!
गलियां सुनते हैं साहब महाजन से,
ज़ब उनके पास कुछ पैसे उधार हो !
ख़ुदा तु ही बता मेरा क्या कसूर है...
हाँ हम भी मजदूर है....
हमारे काम पर दुनियां वाले आराम करते हैं,
सब बैठ के खाते हैं घरों में हम काम करते हैं !
हमारी मेहनत को कैद कर लेते हैं चंद पैसे वाले,
फिर हमहीं पर कालाबाजारी का कोहराम करते हैं!!
हम रात - दिन खेतो में काम कर के अन्न उपजाते हैं,
फिर सारी फसल चंद लोग अपने नाम करते हैं !
जिसने अन्न को जनम दिया खून से सिंच कर,
पराली के नाम पर उन्हें बदनाम करते हैं !!
राजाओं ने तो हमें हर बार सताया है....
तुम्ही मेरे माँ - बाप तुम्ही मेरे हुजूर है...
हाँ हम भी मजदूर है....
@ संतोष 'साग़र'
#Labour_Day