कुछ आश है तभी हर पल ख़ास लगता है, नही खोल पता हूँ

"कुछ आश है तभी हर पल ख़ास लगता है, नही खोल पता हूँ पर , गिरने से डर लगता है. माँ तू ही कहती है ना "खुद पर यक़ीन रख " अब बस खुद पर यक़ीन रखता हूँ. भरोसा था पहले गैरों पर, अब दिल टूटने से डरता है, अब बस खुद पर भरोसा, और मंजिल पर ध्यान है. माना अब बेजान सा होगया हूँ जुबान से, सुनी तो होगी ना कहानी दो जिस्म एक जान वाली, बस उसी तरह मेरी कलम अब मेरी "जान " है.. !"

 कुछ आश है तभी हर पल ख़ास लगता है, 
 नही खोल पता हूँ पर , गिरने से डर लगता है.

माँ तू ही कहती है ना "खुद पर यक़ीन रख "
अब बस खुद पर यक़ीन रखता हूँ. 

भरोसा था पहले गैरों पर, अब दिल टूटने से डरता है, 
 अब बस खुद पर भरोसा, और मंजिल पर ध्यान है. 

माना अब बेजान सा होगया हूँ जुबान से, 
सुनी तो होगी ना कहानी दो जिस्म एक जान वाली, 
 बस उसी तरह मेरी कलम अब मेरी "जान " है.. !

कुछ आश है तभी हर पल ख़ास लगता है, नही खोल पता हूँ पर , गिरने से डर लगता है. माँ तू ही कहती है ना "खुद पर यक़ीन रख " अब बस खुद पर यक़ीन रखता हूँ. भरोसा था पहले गैरों पर, अब दिल टूटने से डरता है, अब बस खुद पर भरोसा, और मंजिल पर ध्यान है. माना अब बेजान सा होगया हूँ जुबान से, सुनी तो होगी ना कहानी दो जिस्म एक जान वाली, बस उसी तरह मेरी कलम अब मेरी "जान " है.. !

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