ओ स्त्री! जंजीरें ही मिली तुम्हें इस समाज से हमेश | हिंदी विचार

"ओ स्त्री! जंजीरें ही मिली तुम्हें इस समाज से हमेशा हमेशा के लिए तुम्हें कैद कर लेने को मगर तुम ये क्यूं भूल जाती हो कि अगर तुम चाहो तो कोई ऐसी जंजीर नहीं जो तुम्हें और तुम्हारे सपनों को बांध सके! ©Deepika Gupta"

 ओ स्त्री! जंजीरें ही मिली तुम्हें 
इस समाज से
हमेशा हमेशा के लिए तुम्हें कैद कर लेने को
मगर तुम ये क्यूं भूल जाती हो
कि अगर तुम चाहो तो कोई ऐसी
जंजीर नहीं जो तुम्हें और तुम्हारे 
सपनों को बांध सके!

©Deepika Gupta

ओ स्त्री! जंजीरें ही मिली तुम्हें इस समाज से हमेशा हमेशा के लिए तुम्हें कैद कर लेने को मगर तुम ये क्यूं भूल जाती हो कि अगर तुम चाहो तो कोई ऐसी जंजीर नहीं जो तुम्हें और तुम्हारे सपनों को बांध सके! ©Deepika Gupta

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