यूँही लगते हैं इलज़ाम सिगरेट पर, उससे ज़्यादा तो या | हिंदी Shayari

"यूँही लगते हैं इलज़ाम सिगरेट पर, उससे ज़्यादा तो यादें जलाती हैं    सिगार की हर खामोश लहर, दिल के ज़ख्मों को गहरा बनाती है। जताते हैं सब हमदर्दी मुझसे, पर हमदर्दी कब किसीके काम आती है।    जिसे निभानी थी दोस्ती की रस्म, वही आँखें चुपचाप घुमा जाती है। अश्कों की ये रवानी, इन होठों की तिश्नगी,   हर एक दर्द की कहानी, बस ख़ामोशी बयाँ कर जाती है। मिटती नहीं हैं लकीरें जो दिल पर खींच दी हैं वक़्त ने,   वो मुड़कर देखती नहीं, बस अपने रास्ते चली जाती है। ये जिंदगी भी अजीब खेल खेलती है,   हंसते हुए देती है ज़ख्म, और फिर मुस्कुराकर समझाती है।. ©Jazbaati Shayar"

 यूँही लगते हैं इलज़ाम सिगरेट पर, 
उससे ज़्यादा तो यादें जलाती हैं
  
सिगार की हर खामोश लहर, 
दिल के ज़ख्मों को गहरा बनाती है।

जताते हैं सब हमदर्दी मुझसे, 
पर हमदर्दी कब किसीके काम आती है।
  
जिसे निभानी थी दोस्ती की रस्म, 
वही आँखें चुपचाप घुमा जाती है।


अश्कों की ये रवानी, इन होठों की तिश्नगी,  
हर एक दर्द की कहानी, बस ख़ामोशी बयाँ कर जाती है।

मिटती नहीं हैं लकीरें जो दिल पर खींच दी हैं वक़्त ने,  
वो मुड़कर देखती नहीं, बस अपने रास्ते चली जाती है।


ये जिंदगी भी अजीब खेल खेलती है,  
हंसते हुए देती है ज़ख्म, और फिर मुस्कुराकर समझाती है।.

©Jazbaati Shayar

यूँही लगते हैं इलज़ाम सिगरेट पर, उससे ज़्यादा तो यादें जलाती हैं    सिगार की हर खामोश लहर, दिल के ज़ख्मों को गहरा बनाती है। जताते हैं सब हमदर्दी मुझसे, पर हमदर्दी कब किसीके काम आती है।    जिसे निभानी थी दोस्ती की रस्म, वही आँखें चुपचाप घुमा जाती है। अश्कों की ये रवानी, इन होठों की तिश्नगी,   हर एक दर्द की कहानी, बस ख़ामोशी बयाँ कर जाती है। मिटती नहीं हैं लकीरें जो दिल पर खींच दी हैं वक़्त ने,   वो मुड़कर देखती नहीं, बस अपने रास्ते चली जाती है। ये जिंदगी भी अजीब खेल खेलती है,   हंसते हुए देती है ज़ख्म, और फिर मुस्कुराकर समझाती है।. ©Jazbaati Shayar

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