अपने हिस्से की रेत अपने साथ लेकर फिरता हूँ थक जाता | हिंदी शायरी

"अपने हिस्से की रेत अपने साथ लेकर फिरता हूँ थक जाता हूँ कही, तो उसी को बिछाकर आराम करता हूँ"

 अपने हिस्से की रेत अपने साथ लेकर
फिरता हूँ
थक जाता हूँ कही,
तो उसी को
बिछाकर आराम
करता हूँ

अपने हिस्से की रेत अपने साथ लेकर फिरता हूँ थक जाता हूँ कही, तो उसी को बिछाकर आराम करता हूँ

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