#यौमे आशूरा ऊंटों की नंगी पीठ पर सवार थी सय्येदात | हिंदी Poetry

"#यौमे आशूरा ऊंटों की नंगी पीठ पर सवार थी सय्येदात खंजर दिखा दिखाकर डराता था उन्हें जल्लाद।। गले में टोंक,थी पैरों में बेड़ियां मजलूम इमामेअबा खड़े थे सर झुका।। बेकसूर थे मासूम,सारे शोहोदा हंसते थे जालिम कर करके अधमरा।। चलाया हरम ए शब्बीर भरे बाजार ए शाम बेपरदा दरबार ए यजीद खड़े किए,’मोहसिन’ बांधे रसन सबको तन्हां।। आया मदीना लुट कर जब काफिला ए शहंशाह यजीदियत को रौंदकर हुसैनियत थी मरहबा।। ✍️✍️मुर्तजा’मोहसिन’ ©Murtaza Ali"

 #यौमे आशूरा
ऊंटों की नंगी पीठ पर सवार थी सय्येदात 
खंजर दिखा दिखाकर डराता था उन्हें जल्लाद।।
गले में टोंक,थी पैरों में बेड़ियां
मजलूम इमामेअबा खड़े थे सर झुका।।
बेकसूर थे मासूम,सारे शोहोदा
हंसते थे जालिम कर करके अधमरा।।
चलाया हरम ए शब्बीर
भरे बाजार ए शाम बेपरदा 
दरबार ए यजीद खड़े किए,’मोहसिन’
बांधे रसन सबको तन्हां।।
आया मदीना लुट कर 
जब काफिला ए शहंशाह
यजीदियत को रौंदकर 
हुसैनियत थी मरहबा।।
✍️✍️मुर्तजा’मोहसिन’

©Murtaza Ali

#यौमे आशूरा ऊंटों की नंगी पीठ पर सवार थी सय्येदात खंजर दिखा दिखाकर डराता था उन्हें जल्लाद।। गले में टोंक,थी पैरों में बेड़ियां मजलूम इमामेअबा खड़े थे सर झुका।। बेकसूर थे मासूम,सारे शोहोदा हंसते थे जालिम कर करके अधमरा।। चलाया हरम ए शब्बीर भरे बाजार ए शाम बेपरदा दरबार ए यजीद खड़े किए,’मोहसिन’ बांधे रसन सबको तन्हां।। आया मदीना लुट कर जब काफिला ए शहंशाह यजीदियत को रौंदकर हुसैनियत थी मरहबा।। ✍️✍️मुर्तजा’मोहसिन’ ©Murtaza Ali

# यौमे आशूरा

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