बुझ गई है बत्तियां सारी, ख़त्म ये मेला हो गया,
उड़ गईं आँगन से चिड़ियाँ घर अकेला हो गया।
पथरा गई हैं बाप की आंखे, मां के हृदय में शूल है,
दोनो ही बस इतना सोचे, आख़िर किसकी ये भूल है।
खेल खेल की इस उम्र में, जाने कैसे ये खेला हो गया,
उड़ गई आंगन से चिड़िया घर अकेला हो गया।
जीते जीवन मौत के दर्शन, कैसे चला ये सुदर्शन
अश्रु नहीं वो रक्त है जो पिता की आंखों से बह रहे,
इस सजा की कोई भूल बताए, बह बह के ये कह रहे
भवन प्रेम का ढह के एक मिट्टी का ढेला हो गया
उड़ गई आंगन से चिड़िया घर अकेला हो गया।
©Romy kumari
#दर्द