आशा, आकांक्षा एवं महत्वाकांक्षा में अंतर होता है मेरे दोस्त,
तीनों में से एक भी हो तो जीने का मकसद बताती है रोज।
आशा हर बार नई उम्मीद जगाए,
आकांक्षा जीने की नई नई वजह दे जाए।
पर महत्वाकांक्षा गर सीमित हो तो
आसमान की बुलंदिया दिखाए,
गर हो जाए महत्वाकांक्षा गुमान का घर,
तो अपनों एवं रिश्तों से दूर ले जाए।
©Vasudha Uttam
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