White चाहत
आग से अंगार तक ,अंगार से राख तक
इतनी चाहत दी उसे ,बर्बादी की हद तक
वो कहते थे रो,हम रोते रहे
वो परखते रहे ,हम प्यार दिखाते रहे
वो मेरी चाहत का इम्तेहान लेते रहे
हम चाहत लिए नजरों से उन्हें देखते रहे
बदले में उतनी ही सिद्दत से देखा उन्होंने
हम चाहत समझते रहे ,वो फरेब करते रहे
हम प्यार करते रहे ,वो उपहास करते रहे
फिर भी चाहेंगे उन्हें आखरी सांस तक
वो चाहत ही क्या अगर
चाहा नहीं बरबादी की हद तक
©NISHA DHURVEY
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