ऐसे माता-पिता जो अपने संतानो का चरित्र निर्माण नहीं कर पाते।
उनकी संताने ईर्ष्या और जलन में दुसरो की संतानों के चरित्र पर जूठे आक्षेप लगाती है।
आजकल लोग अपनी नाकामयाबी और पतन के कारण दुसरो की खुशियां और बरकत नहीं देख पाते।
वस्तुतः जलन की आग में अपने खुद का पतन भी उन्हें महसूस नही होता।
और वहां से शुरू होता है संघर्ष
सारे संबंध संघर्षों में परिवर्तित हो जाते है।
-d.r.joshi
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